मुख्य रूप से भारतीय संगीत की दो प्रसिद्ध पद्तिया मानी जाती है .
1.उत्तर भारतीय संगीत पद्ति
2.दक्षिण भारतीय संगीत पद्ति
1. उत्तर भारतीय संगीत पद्ति :-
इसे हम हिंदुस्तानी संगीत पद्ति भी कहते है| भारत के अधिकतर भागो में यही पददति प्रचलित है इस पद्ति का नाम ही यह स्पष्ट होता है की
यह उत्तर भारत में अधिक प्रचलन में है भारत में यह पंजाब हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात,, जम्मू कश्मीर, उड़ीसा, आदि राज्यों क साथ अन्य भी कई राज्यों में प्रचिलित है
2. दक्षिण भारतीय संगीत पददति :-
जैसा क नाम से ही स्पष्ट होता है की यही दक्षिण भारतीय राज्यों में अधिक प्रचिलित है |जैसे :-मैसूर, आंध्रप्रदेश ,तमिलनाडु आदि |इस पद्ति को हम कर्णाटकीय संगीत पद्ति के नाम से भी जानते है
भारत में यह दो पद्तिया ही प्रचलित है| प्राचीन काल में सम्पूर्ण भारत में एक ही पद्ति प्रचलित हुआ करती थी ,परन्तु तेरहवी शताब्दी में भारत में मुसलमानो का आगमन हुआ तो उनके द्वारा भारतीय संगीत में बहुत सारे बदलाव किये गए और इस बदलाव ने उत्तर भारत में संगीत को बहुत अधिक प्रभावित किया और समय के साथयही संगीत दो भागो में बट गया
|क्योकि मुसलमान शासको का उत्तर भारत पर अधिक प्रभाव था इसलिए उत्तर भारत के संगीत में अनेक प्रकार क परिवर्तन आये परन्तु दक्षिण भारतीय संगीत इन परिवर्तनों से अछूता रह गया |
इन परिवर्तनों के कारण दो पद्तिया प्रचलन में आयी | मुसलमान शासको को संगीत से प्रेम था इसलिए इनके शासनकाल में संगीत पर अनेक प्रयोग किये गए
, इन्होने श्रंगारिकता को संगीत में समावेश करने के साथ साथ भारतीय संगीत सम्बन्धी ग्रंथो को भी नष्ट कर दिया | फ़ारसी संगीत , सभ्यता व कला का उत्तर भारतीय संगीत पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा जबकि दक्षिण में इसका ज्यादा प्रभाव नहीं रहा |परन्तु फिर भी दोनों पद्तियो में अंतर के साथ कुछ समानताये भी है
समानताये
* दोनों पद्तियो ने ठाट राग सिद्धांत को माना है
* दोनों पददति में एक सप्तक में बाईस श्रुति मानी जाती है
* दोनों पददतियो में कुल 12 स्वर माने जाते है
* कुछ राग भी ऐसी है जो दोनों पददतियो में एक जैसे नाम से जाने जाते है जैसे :- बागेश्री
अंतर
* दोनों पददतियो में स्वरों की संख्या तो समान है परन्तु कुछ स्वरों को अलग नाम से भी पुकारा जाता है
* कुछ राग ऐसी है जिन्हे उत्तर भारत में अलग नाम से व दक्षिण भारत में अलग नाम से जाना जाता है
* उतर भारत में प्रयोग होनी वाले थाटों की संख्या में और दक्षिण भारत में प्रयोग होना वाले थाटों की संख्या में भिन्नता पाई जाती है
* उत्तर भारतीय संगीत की गायन शैली में और दक्षिण भारतीय संगीत की गायन शैली में बहुत अंतर पाया जाता है
* दोनों पददतियो की तालो में भी भिन्नता पाई जाती है
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