अहीर भैरव

राग अहीर -भैरव

थाट- भैरव 
जाती- संपूर्ण 
वादी- म
संवादी- सा 
स्वर- रे नी  अन्य शुद्ध 
न्यास के स्वर- रे ग म प
समय- प्रातः काल 
सम प्राकृतिक राग - आनंद भैरव
आरोह - सा रे ग म प ध नि सं
अवरोह -सां नि ध प ग म रे $ रे सा
पकड़ - ग म रे $ रे सा , नि सा ध नि रे $ रे सा
इसे उत्तरांग प्र्धान राग माना जाता हैं यह पूर्वांग में भैरव और  उत्तरांग में काफी क समान हैं यह गंभीर प्रकृति का राग हैं यही एक नवीन राग हैं इसलिए इसमें बहुत अधिक प्राचीन बंदिशे देखने को नहीं मिलती हैं यह राग भैरव का ही एक प्रकार हैं इसमें रे पर न्यास और आंदोलन कियाजाता हैं इसका चलन तीनो सप्तकों में ही होता हैं  यह एक मधुर और प्रचलित राग है

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