राग - मारवा
थाट - मारवा
जाति - षाड़व षाड़व
वादी - रे
सम्वादी- ध
स्वर - रे ,म (तीव्र )शेष शुद्ध
वर्जित स्वर - प
न्यास के स्वर - रे ,ध
मरवा अपने थाट का आश्रय राग हैं यह पूर्वांग प्रधान राग हैं यह सयकालीन राग हैं इसका चलन मंद्र और मध्य सप्तक में अधिक होता हैं राग में कई बार अवरोह में सा का लंघन किया जाता हैं मरवा राग में रे को वक्रत्व अत्यंत सुंदर लगता हैं इसकी प्रकृति गंभीर होने क कारणइसमे मींड खटका मुरकी गमक आदि का खूब प्रयोग होता हैं यह राग सुनने में वैराग्य भाव का अनुभव कराता हैं
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