कजरी एक लोकप्रिय गीत है जो उत्तर प्रदेश के पूर्वी भागों में अधिक पाया जाता है इसे कजली के नाम से भी जाना जाता है कजरी में अधिकतर वर्षा ऋतु , विरह गीत , राधा कृष्ण की लीलाओं का वर्णन देखने को मिलता है इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है कजरी को कजली नाम से भी जाना जाता है कजरी का गायन पुरुषों और महिलाओं दोनों के द्वारा किया जाता है महिलाएं जब समूह में इसे प्रस्तुत करते हैं तो उसे ढूनमुनियाॅ कजरी कहते हैं पुरुषों की कजरी अलग प्रकार की होती है उनके प्रस्तुत करने का ढंग अलग होता है कजरी का कजरी सावन के महीने में त्यौहारों जैसे तीज रक्षाबंधन आदि सावन के महीने में होता है एनरिक कजरी ऐसे देखने सुनने को मिलती है जब नव विवाहिता अपने पीहर रहने को आती है और अपने भाभी और सखियों के संग झूला झूलते हुए मिलकर कजरी का गायन करती हैं
मिर्जापुर से बनारस की कजरी बहुत प्रसिद्ध है दोनों का अपना अलग-अलग रंग है कजरी का संबंध एक धार्मिक तथा सामाजिक पर्व से भी जुड़ा है भादो के कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी व्रत पर्व मनाया जाता है यह स्त्रियों का मुख्य त्यौहार है इस दिन सभी स्त्रियां नए वस्त्र और आभूषण पहनकर कजरी देवी की पूजा करती है और अपने भाइयों को 'जई' बांधने को देती है इस दिन व qwह रतजगा करके सारी रात कजरी गाती है
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