ध्वनि के उत्पन्न होनी की प्रक्रिया में वायु दबाव के कारण या वायु प्रवाह क द्वारा एक कम्पन अर्थात आंदोलन उत्पन्न होता है यही पर नाद की उत्पत्ती होती है
जब ध्वनि उत्पन्न होती है तो यह आंदोलन संख्या कभी नियमित रूप से सिथिर तो कभी अनियमित रूप से अनिश्चित व अस्थिर होती है
परन्तु संगीत उपयोगी नाद वही होता है जो ध्वनि सुनने में मधुर तथा संगीत उपयोगी हो
जिस ध्वनि की संख्या सिथिर नहीं होती वह ध्वनि संगीत उपयोगी नाद नहीं कहलाती |
नाद ध्वनि के अंदर एक निश्चित समय में एक मात्रा से दूसरी मात्रा के बीच के अंतर में ही स्थापित होता है ये एक मात्रा से दूसरी मात्रा के बीच के समय को नाद का काल कहा जाता है
नाद क दो भेद है
1. आहत नाद
2. अनाहत नाद
आहत नाद
आहत नाद से अभिप्राय उस नाद से हे जब नाद किसी प्रकार क घर्षण या टकराव द्वारा या फिर किसी
वस्तु में वायु के प्रवाह से उतपन्न हो |
जैसे की हारमोनियम में वायु भरकर स्वरों के बजाने के माध्यम से जब वायु को निकला जाता है और तबले पर हथेली व उंगलियों के माध्यम से प्रहार किया जाता है तो जो ध्वनि उतपन्न होती है वह आहात नाद के कारण ही उत्पन्न होती है
अनाहत नाद
यह वह नाद है जिसका संगीत से कोई सम्बन्ध नहीं होता यह अपने आप अर्थात स्वयं ही बिना किसी संघर्ष के ही उत्पन्न होता है यह नाद केवल अनुभव ही किया जा सकता है|
इसका प्रयोग ऋषि मुनियो व योगी पुरुषो क द्वारा किया जाता है यह नाद मोक्ष प्राप्ति के साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है , यह वह नाद ह जो हमारे अंदर ही विधमान है हम जानबूझ करइसे उत्तपन्न नहीं करते
जैसे यदि हम हाथो द्वारा अपने कानो को बंद कर ले तो हमे एक हल्की सी ध्वनि लगातार सुनाई देती है ये ध्वनि ये ध्वनि न तो कम होती ह न ही बढ़ती है और न ही कभी बंद होती है यह हर समय उपस्थित रहती है
यही मनुष्य के आध्यात्मिक जीवन से सम्बन्धित होती है , इसका संगीत से कोई सम्बन्ध नहीं होता है | इसी को हम अनाहत नाद कहते है
ध्वनि के आधार पर नाद के तीन भेद है
1 नाद का उचा-नीचपन अर्थात तारता
2 नाद का छोटा-बड़ापन अर्थात तीव्रता
3 गुण व जाती
1 नाद का उचा-नीचपन
इसे तारता (Pitch )भी कहते है जब नाद उत्पन्न होते है तोएक नाद की कम्पन की संख्या दूसरे नाद की कंपन(vibration) की संख्या से अलग होती है जसे सा से ऊँचा रे , व रे से ऊँचा गए ,
इन स्वरों में यह अंतर नाद की कंपन संख्या में जो अंतर् है उसी के कारण ही होता है सतो स्वरों की ध्वनियों में अंतर् नाद की इसी विशेषता पर निर्भर करती है
2 नाद का छोटा-बड़ापन :-
नाद की इस विशेषता को हम नाद की प्रबलता या तीव्रता की नाम से भी जानते है
जब हम किसी वस्तु पर आघात करे या किसी वाद्य की तारो को छेड़े तो एक ध्वनि या आवाज की उत्पत्ति होती है यदि हम यह कार्य जोर लगा कर करते है
तो यह आवाज तेज व अधिक देर तक सुनाई देती है | इसके विपरीत यदि हम यह कार्य हल्के से करते है
तो यह आवाज पहली की स्थिति में कम उत्पन्न होगी और कम समय के लिए सुनाई देगी | यह नाद क छोटे-बड़ेपन के ही कारण होता है
नाद का गुण :-
नाद के गुण से अभिप्राय है की जब हम कोई ध्वनि सुनते है तो हम तुरंत पहचान जाते है कि ये सम्बन्धित व्यकित या वाद्य की आवाज है |यह नाद कि कारण ही होता है नाद की यह तुरंत पहचने जाने वाली विशेषता ही नाद का गुण कहलाती है
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